Sunday, 13 July 2014

"मिथ्या-जिन्दगी" [This Hindi poem is written by Mayarajesh,Sharjah;
Date -13-07-2014]


अपनापन,यह अपना दिल,
यह "अपना", "अपना" होता क्या ?!!!
कुछ भी अपना होता नहीं I
इस दुनिया में, भिर भी सब 
क्यों यही भ्रम में जीते है ?!!!

सच तो कड़ुआ ही होता है I
पर दिल अपना वो मानता ही नहीं II 
जब सच को जान लोगे हम 
तब हम ही नहीं होंगे इस दुनिया में II

अपनापन,यह अपना दिल,
यह "अपना", "अपना" होता क्या ?!!!

दौलत ,शौहरत चाहिए सब को I
नहीं चाहिए सच्चा दिल II
चाहिए दोस्ती "बड़े" लोगों कि I
नहीं चाहिए इश्वर का साथ II

सब को पैसे कि लालच हैं I
किसी को मूल्य कि चिंता नहीं II
माँ बाप और पति पत्नी भी-
पैसे में प्यार को डुबाते हैं II

अपनापन,यह अपना दिल,
यह "अपना", "अपना" होता क्या ?!!!

बच्चों में मासूमियत नहीं अब I
नहीं बाप-बेटी कि रिष्ते में II 
भाई अपने ही बहनI कि मान को,
बाज़ार में बेचते हैं II

माँ-बाप के हाथों मरते हैं बच्चे -
आज कि पागल दुनिया में I
माँ-बाप को भी मारते हैं बच्चे अपने-
आज कि इस कलि-युग में ही II

अपनापन,यह अपना दिल,
यह "अपना", "अपना" होता क्या ?!!!

पति-पत्नी में प्यार नहीं I
वो ढूँठे बाहर "सच्चा प्यार" II
बाद में सम्जे "जूटा है बाहर का प्यार" I
बेहतर था अपना "घर का प्यार" II

नेता को प्रजा कि चिंता नहीं I
नहीं प्रजा को धर्म कि भी II
न्याय को जीते हैं अन्याय यहाँ I
सत्य को असत्य भी II

अपनापन,यह अपना दिल,
यह "अपना", "अपना" होता क्या ?!!!

ना प्यार है ;ना सत्य भी I
ना है धर्म और नीति इधर II 
सोचते है क्यों रहूँ ;
इस नरक में अब ओर भी समय हम II

अपनापन,यह अपना दिल,
यह "अपना", "अपना" होता क्या ?!!!
कुछ भी अपना होता नहीं I
इस दुनिया में, भिर भी सब 
क्यों यही भ्रम में जीते है ?!!!

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